महाभियोग एक लंबी एवं जटिल प्रक्रिया है और अभी तक का अनुभव यही बताता है कि इस प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाना खासा मुश्किल होता है। मुख्य संपादकीय जज बीएच लोया की मौत के मामले में मनमाफिक फैसला न आने के तत्काल बाद कांग्रेस और कुछ अन्य दलों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र के खिलाफ महाभियोग लाने की जैसी हड़बड़ी दिखाई और राज्यसभा के सभापति को इस आशय का प्रस्ताव भी सौंप दिया उससे उसकी खिसियाहट ही प्रकट हो रही है। देश के राजनीतिक इतिहास में यह पहली बार है जब संकीर्ण राजनीतिक कारणों से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने की पहल की गई है। यह राजनीति के गिरते स्तर का नया प्रमाण है। कांग्रेस एक बेहद खराब परंपरा की शुरुआत कर रही है। इससे उसे अपयश के सिवाय और कुछ हासिल होने वाला नहीं है, यह महाभियोग प्रस्ताव पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर न करने से भी स्पष्ट है। सलमान खुर्शीद एवं कुछ अन्य कांग्रेसी नेता भी इस प्रस्ताव से असहमत हैं। सलमान खुर्शीद ने यह कहकर एक तरह से कांग्रेस की पोल ही खोली है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय या नजरिये से अस