दसवीं पास सोनिया साहू की उम्र 20 साल है। वह मेडिकल जांच कराने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं। दरअसल, सोनिया साहू जैसी सैंकड़ों गर्भवती महिलाएं छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के बिल्हा ब्लॉक में 9 मार्च को अपनी व गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य की मुफ्त जांच के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एकत्रित हुई थीं। ये महिलाएं प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में दूर-दराज के गांवों से यहां आई थीं। इस केंद्र में कार्यरत स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. गीता प्रधान का कहना है कि पीएमएसएमए के कारण इस केंद्र में ऐसी महिलाओं की संख्या में तकरीबन 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पहले ऐसी महिलाओं की संख्या 30-35 प्रतिशत थी और अब यह आंकड़ा 75-80 प्रतिशत हो गया है। लक्ष्य 100 प्रतिशत का है ताकि हर गर्भवती महिला का प्रसव पूर्व पूरी जांच हो और मातृत्व मृत्युदर और शिशु मृत्युदर को कम किया जा सके।
छत्तीसगढ़ में मातृत्व मृत्युदर 221 है जबकि बिलासपुर में यह आंकड़ा 261 है। वहीं इसका राष्ट्रीय आंकड़ा प्रति एक लाख पर 167 है। छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में यह दर बहुत ज्यादा है। विश्व प्रसिद्व पत्रिका लेसेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण व शहरी इलाकों में होने वाली ऐसी मौतों में काफी अंतर है। सनद रहे कि भारत में संस्थानिक प्रसव व स्किल्ड बर्थ में सुधार तो हुआ है पर मातृ मृत्युदर और शिशु मृत्युदर चिंता का विषय बना हुआ है। भारत में हर साल करीब 44 हजार महिलाएं गर्भावस्था संबधित कारणों से मर जाती हैं। करीब 6.6 लाख बच्चे अपने जन्म के 28 दिन के भीतर ही मर जाते हैं। अगर उचित समय पर गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व जांच मुहैया कराई जाए और उन्हें इलाज मुहैया कराया जाए तो इनमें से अधिकतर मौतों की रोकथाम संभव है और काफी संख्या में जिंदगी भी बचाई जा सकती है।
2016 में शुरू हुए प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान का मुख्य उद्देश्य गर्भवती महिला की प्रसव पूर्व जांच कर उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिला का उचित इलाज एवं सुरक्षित प्रसव कराना है। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना है। मुल्क के सामने एक मुख्य जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य में सुधार करना चुनौती है। सुरक्षित गर्भावस्था एवं सुरक्षित डिलीवरी के माध्यम से जच्चा-बच्चा मृत्युदर को कम करने का केंद्र सरकार पर बहुत दबाव है। सरकार सतत विकास लक्ष्य के तहत निर्धािरत मातृ व शिशु मृत्यु दर वाले लक्ष्य को हासिल करना चाहती है। नई स्वास्थ्य नीति में सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मातृ मुत्यृ दर व शिशु मृत्यु दर में कमी लाने व सांस्थानिक प्रसव के 100 प्रतिशत लक्ष्य को हासिल करने पर जोर दिया गया है। नई नीति में 2020 तक मातृत्व मृत्यु दर कम करके 100 व शिशु मृत्यु दर को 2019 तक 28 पर लाने का लक्ष्य रखा गया है।
गौरतलब है कि सतत विकास लक्ष्य हासिल करने की समय सीमा 2030 है और 13 वर्षो के भीतर भारत को इन लक्ष्यों को हासिल करना है। मातृत्व मृत्यु दर प्रति लाख जीवित में 70 से भी कम करना व नवजात मृत्यु दर प्रति हजार में 12 पर लाना है। 1प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान को शुरू करने का एक मकसद सतत विकास लक्ष्य 2030 को हासिल करना भी है। इस कार्यक्रम के तहत सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं को मुफ्त प्रसव पूर्व सेवाएं मुहैया कराई जाती हैं। गर्भवती महिलाएं गर्भाधारण की दूसरी या तीसरी तिमाही में सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में स्त्री रोग विशेषज्ञों से विशेष प्रसव पूर्व जांच सेवाओं का लाभ उठा रही हैं। इन सेवाओं में अल्ट्रासांउड, रक्त, मल और रक्तचाप जांच आदि की शामिल है। 1इस मुहिम में उन महिलाओं को खास तौर पर लक्षित किया जा रहा है जो प्रसव पूर्व संबंधित जरूरी सेवाओं से बाहर हैं या ड्रॉप आऊट हैं। इनमें ऐसी महिलाएं भी शमिल हैं जिन्हें न्यूनतम चिकित्सीय सेवाएं भी उपलब्ध नहीं हो पाती। इस कार्यक्रम का आधार वाक्य यह है कि अगर भारत में हर गर्भवती महिला की ठीक से जांच की जाए, उसे जरूरी चिकित्सीय सेवाएं उचित समय पर मुहैया कराई जाएं तो गर्भवती महिलाओं व नवजातों की मौतों को रोका जा सकता है।
अहम सवाल यह है कि सरकार इस लक्ष्य को हासिल कैसे करेगी। भारत डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। स्त्री रोग विशेषज्ञों की भारी कमी है। इन हालातों के मद्देनजर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में मुल्क के निजी डॉक्टरों से सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में स्वैच्छिक सेवाएं देने की अपील की गई थी। इस अपील के पीछे मंशा सरकारी प्रयास में तेजी लाना है। इसका असर भी हुआ है। स्त्री रोग विशेषज्ञ फेडरेशन से संबंद्व सैंकड़ों डॉक्टर अपनी स्वैच्छिक सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में बीते तीन महीनों में 58 निजी डॉक्टरों ने अपना पंजीयन कराया है। बिल्हा ब्लॉक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्वेच्छा से सेवाएं मुहैया कराने वाली निजी स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. माया दुबे का मानना है कि ऐसे प्रयास भारत जैसे मुल्क के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारत सरकार का मानना है कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान का अमल में लाया जाना सरकारी पदाधिकारियों की प्रतिबद्धता और स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने वालों का वक्त पर स्वैच्छिक योगदान पर निर्भर करता है। लिहाजा सरकार ने इस अभियान को सफल बनाने के लिए निजी डॉक्टरों को इस अभियान से जोड़ने पर जोर दिया और ‘आई प्लेज फॉर 9’ एचीवर अवॉर्ड का भी ऐलान किया था। निजी डॉक्टरों के स्वैच्छिक प्रयासों को राष्ट्रीय व प्रांतीय स्तर पर पहचान और सम्मान दिलाने के मकसद से टीम, निजी व विशेष वर्ग के अवॉर्ड रखे गए हैं। मातृत्व मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर में कमी लाना मौजूदा सरकार की प्रमुख प्राथमिकता है। नई स्वास्थ्य नीति से भी इसका पता चलता है।
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