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'जल क्रान्ति अभियान'



वर्ष 2015-16 के दौरान देश में जल संरक्षण एवं प्रबन्धन को सुदृढ़ बनाने के लिए सभी पणधारियों को शामिल करते हुए एक व्यापक एवं एकीकृत दृष्टिकोण से ‘जल क्रान्ति अभियान’ का आयोजन किया जाएगा ताकि यह एक जन आन्दोलन बन जाए।

1. तीव्रता से बढ़ती जनसंख्या तथा तेजी से विकास कर रहे राष्ट्र की बढ़ती हुई आवश्यकताओं के साथ जलवायु परिवर्तन के सम्भावित प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए जल की प्रतिव्यक्ति उपलब्धता प्रतिवर्ष कम होती जा रही है।

2. यदि समय रहते इस समस्या का उचित समाधान नहीं किया गया तो जल की तेजी से बढ़ती हुई माँग के कारण विभिन्न प्रयोक्ता समूहों तथा सह बेसिन राज्यों के बीच जल विवाद होने की सम्भावना है।

3. देश में एक समग्र एवं एकीकृत दृष्टिकोण अपनाते हुए जल संरक्षण, जल उपयोग दक्षता तथा जल उपयोग प्रबन्धन के क्रियाकलापों को बढ़ावा देने और सुदृढ़ बनाए जाने की अविलम्ब आवश्यकता है।

इन मुद्दों पर जन-जागरुकता का सृजन किया जाना महत्त्वपूर्ण है अथवा अन्य शब्दों में हमें पूरे देश में ‘जल क्रान्ति अभियान’ चलाने की आवश्यकता है।

उद्देश्य


1. जल सुरक्षा और विकास स्कीमों (उदाहरण के लिए सहभागिता सिंचाई प्रबन्धन) में पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय निकायों सहित सभी पणधारियों की जमीनी स्तर पर भागीदारी को सुदृढ़ बनाना;

2. जल संसाधन के संरक्षण एवं प्रबन्धन में परम्परागत जानकारी का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहन देना;

3. सरकार, गैर-सरकारी संगठनों, नागरिकों आदि में विभिन्न स्तरों से क्षेत्र स्तरीय विशेषज्ञता का उपयोग करना; और

4. ग्रामीण क्षेत्रों में जल सुरक्षा के माध्यम से आजीविका सुरक्षा में संवर्धन करना।

कार्यनीतियाँ


‘जल क्रान्ति अभियान’ के उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रमुख कार्यनीतियाँ निम्नानुसार होंगी:
1- जल सुरक्षा बढ़ाने के लिए स्थानीय/क्षेत्रीय विशिष्ट नवाचारी उपाय विकसित करने के लिए परम्परागत ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना;

2- परम्परागत जानकारी और जल संरक्षण एवं उपयोग के लिए स्रोतों को पुनर्जीवित करना;

3- सतही और भूजल के संयुक्त उपयोग को प्रोत्साहित करना;

4- वर्षा जल के कुशल एवं सतत उपयोग के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना। पुरानी एवं नई भूजल स्कीमें, जल संचयन संरचनाओं के निर्माण के माध्यम से जल संरक्षण के लिए अतिरिक्त सुविधाएँ सृजित करना;

5- पुनर्भरण के लिए वर्षा जल संचयन को घरेलू, व्यावसायिक तथा औद्योगिक परिसरों के लिए अनिवार्य बनाना

6-जल गुणवत्ता के निर्दिष्ट मानदण्डों को बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप करना;

7- जल संसाधन विकास एवं प्रबन्धन के लिए विभिन्न विभागों के प्रयासों में समन्वय करना;

8- विभिन्न प्रयोजनों, विशेष तौर पर उद्योग, कृषि एवं घरेलू प्रयोजन के लिए जल की माँग को पूरा करने के लिए तथा जल प्रयोग दक्षता को बढ़ावा देने के लिए जल के सामाजिक विनियमन को प्रोत्साहित करना;

9- जुड़ाव, उत्तरदायित्व एवं जिम्मेदार भागीदारी की भावना लाने के लिए जल सम्बन्धी स्कीमें तथा परियोजनाओं में उनके प्रचालन व रख-रखाव में ग्रामीण स्तर पर हिस्सेदारी को औपचारिक रूप देना;

10- जल सम्बन्धी मुद्दों के समाधान के लिए तथा जल सुरक्षा की नूतन पद्धतियाँ विकसित करने के लिए पीआरआई को प्रोत्साहन देने/ सम्मानित करने हेतु प्रावधान;

11- सभी पणधारियों के साथ सकारात्मक रूप से जुड़ने के लिए जल क्रान्ति अभियान हेतु एक शुभंकर (लोगो) का इस्तेमाल किया जाएगा।

जल क्रान्ति अभियान के अन्तर्गत प्रस्तावित क्रियाकलाप

1. जल ग्राम योजना
2. मॉडल कमान क्षेत्र विकसित करना
3. प्रदूषण उपशमन
4. जन जागरूकता कार्यक्रम
5. अन्य क्रियाकलाप

जल ग्राम योजना

इस क्रियाकलाप के अन्तर्गत देश के 672 जिलों में से प्रत्येक जिले में पणधारियों की प्रभावी भागीदारी से कम-से-कम एक जलग्रस्त गाँव में जल का इष्टतम एवं सतत प्रावधान सुनिश्चित करने के लिए जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा स्कीमें शुरू की जानी हैं।

1. प्रत्येक जिले में जल की अत्यधिक कमी वाले एक गाँव को ‘जल ग्राम’ का नाम दिया जाएगा।

2. जल ग्राम का चयन जल ग्राम अभियान के कार्यान्वयन के लिए गठित जिलास्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा। जल ग्राम के चयन के लिए आधारभूत आँकड़ों का प्रारूप अनुलग्नक-क में संलग्न है।

3. प्रत्येक गाँव को एक इंडेक्स वैल्यू (जल की मांग और उपलब्धता के बीच अंतर के आधार पर) दी जाएगी और सबसे अधिक इंडेक्स वैल्यू वाले गाँव को ‘जल क्रान्ति अभियान’ कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा।

4. स्थानीय जल पेशेवरों को जल सम्बन्धी मुद्दों के सम्बन्ध में जन-जागरुकता सृजित करने के लिए तथा सामान्य जल आपूर्ति सम्बन्धित समस्याओं के निराकरण के लिए, उपयुक्त प्रशिक्षण देकर उनका एक संवर्ग (अर्थात जल मित्र) बनाया जाएगा।

5. सम्बद्ध महिला पंचायत सदस्यों को जल मित्र बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

6. प्रत्येक जल ग्राम के लिए सुजलम कार्ड (शुभंकर (लोगो) : ‘जल बचत जल निर्माण’) के रूप में जाना जाने वाला एक जल स्वास्थ्य कार्ड तैयार किया जाएगा जो गाँव के लिए उपलब्ध पेयजल स्रोतों की गुणवत्ता के सम्बन्ध में वार्षिक सूचना देगा।

7. प्रत्येक जल ग्राम के लिए ब्लॉक स्तरीय समितियों द्वारा गाँव में जल के स्रोत, मात्रा एवं गुणवत्ता सम्बन्धी उपलब्ध आँकड़ों और अनुमानित आवश्यकताओं के आधार पर एक व्यापक एकीकृत विकास योजना बनाई जाएगी। समिति एक सतत पद्धति से इष्टतम मात्रा एवं गुणवत्ता के साथ जल उपलब्ध कराने के लिए एक एकीकृत विकास योजना बनाएगी।

8. इस योजना में गाँव में जल के वर्तमान स्रोतों, वर्तमान में मात्रा एवं गुणवत्ता के सन्दर्भ में जल की उपलब्धता, आवश्यकता एवं उपलब्धता के बीच अन्तर और इस स्थिति में सुधार लाने के लिए राज्य सरकार/ केन्द्र सरकार की विभिन्न स्कीमों के अन्तर्गत शुरू किए जाने वाले सम्भावित कार्यों के सम्बन्ध में सूचना शामिल होगी।

9. स्थानीय पणधारियों, विशेष रूप से किसानों और जल प्रयोक्ता संघों को उनके सामने आ रही समस्याओं के सम्भावित समाधानों के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। योजना बनाते समय स्थानीय प्रतिनिधियों के सुझाव पर यथोचित रूप से विचार किया जाएगा। पणधारियों द्वारा कार्य के प्रचालन एवं अनुरक्षण हेतु प्रावधान भी इस योजना का एक अभिन्न अंग होगा। एक बार जिलास्तरीय समिति द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद यह योजना सम्बन्धित लाइन विभागों द्वारा अलग-अलग स्कीमें तैयार करने का आधार बनेगी।

10. कृषि, पेयजल एवं स्वच्छता; शहरी विकास; ग्रामीण विकास; नव एवं नवीकरणीय ऊर्जा आदि मन्त्रालयों के प्रतिनिधियों को भी जिला एवं ब्लॉक स्तर पर चयन एवं आयोजन के लिए जोड़ा जाएगा।

11. जल ग्राम के सम्बन्ध में एकीकृत विकास योजना, राज्य जल संसाधन विभाग द्वारा कार्यान्वित की जाएगी और इसके लिए निधि, नियोजित स्कीमों जैसे जल निकायों की मरम्मत, नवीकरण एवं पुनरूद्धार, एकीकृत वाटरशेड प्रबन्धन स्कीम जैसी मौजूदा योजना स्कीमों, प्रस्तावित प्रधानमन्त्री कृषि सिंचाई योजना, नव एवं नवीकरणीय ऊर्जा मन्त्रालय के अन्तर्गत स्कीमों और मनरेगा के लिए उपलब्ध निधि में से उपलब्ध कराई जाएगी।

जल ग्राम योजना के अन्तर्गत प्रस्तावित क्रियाकलाप:

1. वर्तमान और बन्द हो चुके जल निकायों (जलाशय, टैंक आदि) और इनके कमान में इनकी वितरण प्रणाली की मरम्मत, नवीकरण एवं पुनरूद्धार

2. वर्षा जल संचयन और भूमि जल का कृत्रिम पुनर्भरण

3. अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण

4. किसानों की सक्रिय भागीदारी के लिए जन-जागरूकता कार्यक्रम

5. जल के कुशल उपयोग के लिए सूक्ष्म सिंचाई

6. जल जमाव वाले क्षेत्रों की पुनर्बहाली के लिए बायो-ड्रेनेज

7. समुदाय आधारित जल निगरानी

8. नई तकनीकों और प्रौद्योगिकी का प्रयोग

9. प्रदूषण उपशमन (सतही और भूमि जल)

10. जल प्रयोक्ता संघों और पंचायती राज संस्थाओं का क्षमता निर्माण।

11. एकीकृत जल सुरक्षा योजना, इसमें किए गये कार्यों और इन कार्यों के परिणामों का मूल्यांकन जिलास्तरीय समिति द्वारा नामित जिला स्तर पर एक समिति द्वारा किया जाएगा। जल क्रान्ति अभियान में शामिल प्रत्येक जल ग्राम के निष्पादन का मूल्यांकन उचित प्लेटफॉर्म जैसे कि भारत जल सप्ताह में किया जाएगा और इस मंच पर इनके सम्बन्ध में जानकारी भी दी जाएगी।

12. लाइन विभाग, ब्लॉक स्तरीय समिति के साथ परामर्श से उनके सम्बन्धित क्षेत्र में स्कीमें तैयार करेंगे। इन स्कीमों के पूरा होने के सम्बन्ध में मूल्यांकन जिला स्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा। तत्पश्चात लाइन विभाग आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करेगा। सम्बन्धित मूल्यांकन अभिकरण को प्राथमिकता आधार पर आवश्यक अनुमोदन देने के लिए सुग्राही बनाने हेतु प्रयास किए जाएँगे। आवश्यक अनुमोदन प्राप्त होने के बाद इन दिशा-निर्देशों के ‘वित्तपोषण प्रबन्ध’ भाग में दिए गए अनुसार कार्यान्वयन के लिए निधि का प्रबन्ध किया जाएगा।

13. यह कार्य सम्बन्धित लाइन विभाग द्वारा प्राथमिकता आधार पर कार्यान्वित किया जाएगा। कार्य के कार्यान्वयन की प्रगति की निगरानी ब्लॉक स्तरीय समिति द्वारा साप्ताहिक आधार पर की जाएगी। इसकी निगरानी मासिक आधार पर जिला स्तरीय समिति द्वारा और तिमाही आधार पर राज्य स्तरीय समिति द्वारा भी की जाएगी।

14. कार्य पूरा होने पर जिलास्तरीय समिति द्वारा कार्य का निष्पादन मूल्यांकन किया जाएगा। कार्यक्रम शुरू होने के दौरान एकत्रित आधारभूत सूचना के सन्दर्भ में गाँव में जल की समस्या की स्थिति की समीक्षा की जाएगी। आवश्यकता होने पर आवश्यक सुधारात्मक व न्यूनतम-परिवर्तन सम्बन्धित कार्य किए जाएँगे।

15. कार्यों की प्रकृति के आधार पर, कार्य पूरा होने के बाद इनका प्रचालन एवं अनुरक्षण जल प्रयोक्ता संघों/ पंचायती राज संस्थाओं को सौंपने के लिए आवश्यक प्रबन्ध किए जाएँगे।

मॉडल कमान क्षेत्र


मॉडल कमान क्षेत्र की पहचान


1. एक राज्य में लगभग 1000 हेक्टेयर का मॉडल कमान क्षेत्र चिन्हित किया जाएगा। मॉडल कमान क्षेत्र के लिए निर्धारित राज्य देश के विभिन्न भागों का प्रतिनिधित्व करेंगे अर्थात उत्तर प्रदेश, हरियाणा (उत्तर), कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु (दक्षिण), राजस्थान, गुजरात (पश्चिम), ओडिशा (पूर्व), मेघालय (उत्तर-पूर्व) इत्यादि।

2. मॉडल कमान क्षेत्र का चयन राज्य की एक वर्तमान/ चालू सिंचाई परियोजना से किया जाएगा जहाँ विभिन्न स्कीमों से विकास के लिए निधि उपलब्ध हो।

3. मॉडल कमान क्षेत्र का चयन जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मन्त्रालय द्वारा राज्य सरकार के साथ परामर्श से किया जाएगा।

मॉडल कमान क्षेत्र का विकास

वर्ष के दौरान मॉडल कमान क्षेत्र के विकास के लिए निम्नलिखित क्रियाकलाप प्रस्तावित हैं:

1. जल संरक्षण

2. नहर के ऊपर एवं तटों पर वाष्पीकरण कम करने के लिए सौर ऊर्जा पैनलों का संस्थापन और जहाँ कहीं उपयोगी हो, वहाँ किसानों के उपयोग हेतु सौर ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि।

3. मात्रात्मक मापन एवं बाराबंदी को प्रोत्साहन देते हुए समुदाय आधारित जल उपयोग निगरानी।

4. सिंचाई के लिए प्राथमिक रूप से शोधित जल का उपयोग

5. जहाँ कहीं उपयोगी हो वहाँ सूक्ष्म सिंचाई (टपक एवं छिड़काव सिंचाई) और पाइप सिंचाई को प्रोत्साहन देना

6. वाटरशेड प्रबंधन और भूजल का उपभोगी उपयोग

7. भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण

8. सहभागिता सिंचाई प्रबन्धन और जल प्रयोक्ता संघों द्वारा जल शुष्क एकत्रित करने के लिए प्रोत्साहन देना।

9. जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मन्त्रालय की अनुमति से कोई अन्य क्रियाकलाप


प्रदूषण नियन्त्रण

जल संरक्षण और कृत्रिम पुनर्भरण

1. भारत की अति दोहित इकाइयों, जहाँ जल की उपलब्धता अत्यन्त कम है और जल स्तर में गिरावट आ रही है, वहाँ पणधारियों को वर्षा जल का उपयोग करके जल संरक्षण एवं कृत्रिम पुनर्भरण, उनके उपयोग, प्रभाव और तकनीकों के सम्बन्ध में जागरूक बनाने और उनके बीच सूचना का प्रसार करने के लिए 126 प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से जल संरक्षण को प्रोत्साहित किया जाएगा।

2. इस कार्यक्रम के तहत ध्यान केन्द्रित किए जाने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों के जलग्रस्त जिले और दमन एवं दीव तथा पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र शामिल होंगे।

3. राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में अति दोहित इकाइयों के वितरण के अनुसार प्रशिक्षण कार्यक्रमों की संख्या निर्धारित की जाएगी।

4. प्रशिक्षण ब्लॉक/ जिला स्तर पर आयोजित किया जाएगा और इसके लिए स्थल राज्य सरकारों के साथ परामर्श से चिन्हित किए जाएँगे।

5. प्रशिक्षण के लिए रिसोर्स पर्सन के.भू.बो./ राज्य सरकारों के सम्बन्धित क्षेत्रीय कार्यालयों के अधिकारी होंगे जिनके क्षेत्राधिकार में क्षेत्र आता है और उनके साथ-साथ राज्य सरकार के अधिकारी भी होंगे।

6. विशेषज्ञ दल समस्याओं की गम्भीरता, वर्तमान सुविधाओं और ग्रामीणों की बातों से अपने आप को परिचित करने के लिए चिन्हित स्थल का दौरा करेंगे। यह दल जल संरक्षण और व्यक्तिगत स्तर पर जल संचयन तकनीकों के उपयोग के लिए परम्परागत स्रोतों को पुनर्जीवित करने हेतु क्षेत्र विशिष्ट परम्परागत जानकारी के साथ आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करेगा।

7. प्रशिक्षण का वित्त पोषण त्रिस्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों (इस वर्ष 350 प्रस्तावित) के अन्तर्गत आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई (आरजीआई) से किया जाएगा।

भूजल प्रदूषण नियन्त्रण


1. भारत में फ्लोराइड और आर्सेनिक भूजल के दो प्रमुख संदूषक हैं। फ्लोराइड और आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में 224 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने हैं जिनमें से 138 कार्यक्रम फ्लोराइड प्रभावित जिलों (कुल प्रभावित जिले-276) में से 138 जिलों में अर्थात प्रत्येक में एक-एक कार्यक्रम और आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों के लिए 86 कार्यक्रम, 86 आर्सेनिक प्रभावित जिलों (कुल प्रभावित जिले-86) में अर्थात प्रत्येक में एक-एक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।

2. यह कार्यक्रम प्रदूषण, स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव और विभिन्न नियन्त्रण विकल्पों के सम्बन्ध में जागरूकता सृजित करने के लिए प्रगतिशील किसानों सहित राज्य सरकार के अधिकारियों, पंचायत के प्रतिनिधियों, जनमत को प्रभावित करने वालों, युवाओं तथा नेहरू युवा केन्द्र के सदस्यों, गैर-सरकारी संगठनों और पणधारियों को लक्षित करते हुए ब्लॉक/ तहसील/ तालुका मुख्यालय पर आयोजित किया जाएगा। इन कार्यक्रमों में क्षेत्र में पाये जाने वाले अन्य भूजल संदूषकों के मुद्दे और इनके सुधारात्मक उपायों सहित सम्भावित समाधानों को भी शामिल किया जाएगा।

3. प्रशिक्षण के लिए रिसोर्स पर्सन के.भू.बो/ राज्य सरकारों के सम्बन्धित क्षेत्रीय कार्यालयों के अधिकारी होंगे जिनके क्षेत्राधिकार में क्षेत्र आता है और उनके साथ-साथ राज्य जलापूर्ति, स्वास्थ्य एवं सिंचाई विभाग के अधिकारी और शैक्षणिक संस्थाओं के प्रतिनिधि भी होंगे। यह दल आधुनिक तकनीकों और क्षेत्र विशेष परम्परागत जानकारी तथा जलशोधन तकनीकों के सम्बन्ध में सूचना का प्रसार करेगा। यदि क्षेत्र में जल के वैकल्पिक स्रोत की सम्भावना हो तो उस पर भी विचार किया जाएगा। सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं को प्रेरित किया जाएगा।

चयनित क्षेत्रों में आर्सेनिक मुक्त कुँओं के निर्माण और राज्य जल आपूर्ति अभिकरणों के अधिकारियों तथा अन्य पणधारियों खासकर जल उपयोगकर्ता संघ (WUAs) और किसानों की क्षमता निर्माण के लिए विशेष कार्यक्रम।

आर्सेनिक संदूषण भूमि जल गुणवत्ता की बहुत बड़ी समस्या है। गंगा के मैदानी क्षेत्रों के एक बहुत बड़े भाग में प्रभावित क्षेत्र फैले हुए हैं। समस्या के समाधान हेतु निम्नलिखित गतिविधियाँ की जाती हैं:

1. के.भू.बो. द्वारा चार प्रभावित राज्यों नामतः उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के पाँच जिलों के सात ब्लॉकों में डीप ट्यूबवेल के निर्माण किया जाना होता है। गाँवों में जल के वितरण सम्बन्धी कार्यक्रम में राज्य सरकार साझेदार होगी। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य पेयजल उद्देश्यों हेतु गहरे जलभृतों से आर्सेनिक मुक्त भूमि जल उपलब्ध कराना है।

2. के.भू.बो. द्वारा उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम में एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम (दो दिवसीय) का आयोजन किया जाना होता है।

3. क्षमता निर्माण कार्यक्रम के लिए रिसोर्स पर्सन के.भू.बो. के सम्बन्धित क्षेत्रीय कार्यालयों, राज्य विभागों के अधिकारियों और अकादमी के प्रतिनिधियों से होंगे।

4. कुओं के निर्माण का वित्तपोषण भूमिजल प्रबन्धन और विनियमन स्कीम से किया जाएगा। चार क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के व्यय का प्रबन्ध आरजीएनजीडब्ल्यूटीआरआई (आरजीआई) के बजट से किया जायेगा।

नदी संरक्षण हेतु गंगा बाढ़ मैदानों का पुनर्भरण

1. गंगा नदी के दोनों किनारों को शामिल करते हुए, जहाँ उपयुक्त भू-आकृतिक इकाइयाँ उपलब्ध हैं और जल भू-विज्ञानी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं, कानपुर, उन्नाव जिलों के भागों में आने वाले जलभृतों में भूमि जल संसाधन के संवर्धन हेतु कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं के सम्बन्ध में एक प्रायोगिक परियोजना को निष्पादित किया जाना।

2. परियोजना को राज्य सरकार के विभागों के परामर्श से उत्तरी क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा निष्पादित किया जाएगा। के.भू.बो. के दल स्कीम को शुरू करने के लिए विशेष क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करने और पहचानने के लिए अभिज्ञात स्थल का दौरा करेंगे।

जन जागरुकता कार्यक्रम

चल रही स्कीम ‘सूचना, शिक्षा और संचार’ के तहत समाज के प्रत्येक क्षेत्र की समस्या को दूर करने और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खासतौर पर जागरुकता अभियान तैयार किए गए हैं। इसमें निम्नलिखित पर ध्यान दिया जाएगा:

1. लोगों को जोड़ने के लिए फेसबुक, ट्वीटर आदि जैसी सोशल मीडिया का उपयोग;

2. रेडियो और टेलीविजन पर आम लोगों के लिए जागरुकता कार्यक्रम;

3. जल क्रान्ति अभियान के सम्बन्ध में जागरुकता फैलाने हेतु प्रिन्ट मीडिया (अर्थात बुकलेट, पोस्टर और पम्पलेट) का उपयोग;

4. निबन्ध, चित्रकला और अन्य प्रतियोगिताओं के माध्यम से बच्चों तथा वयस्कों के लिए जागरुकता कार्यक्रम;

5. अन्तरराष्ट्रीय जल प्रयोक्ता विनिमय कार्यक्रम;

6. नीति योजनाकारों, जनमत बनाने वालों और उद्योग को लक्ष्य बनाते हुए खास गतिविधियाँ; 

7. महत्त्वपूर्ण जल विकास और प्रबन्धन मुद्दों के सम्बन्ध में सम्मेलनों, कार्यशालाओं का आयोजन।

वर्ष 2015-16 के दौरान नियोजित गतिविधियों की निर्देशक सूची

1. आम जनता के लिए जल क्रान्ति अभियान की वेबसाइट तैयार करना और रख-रखाव करना तथा कार्यान्वयन अभिकरणों की गतिविधियों की निगरानी करना।

2. जल क्रान्ति अभियान का फेसबुक पेज और ट्वीटर एकाउंट बनाना तथा इसकी लगातार अपडेटिंग करना।

3. जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण के सभी आधिकारिक वेबसाइटों में जल क्रान्ति अभियान वेबसाइट का लिंक बनाना और राज्य जल संसाधन विभागों जैसे अन्य सम्बन्धित कार्यालयों को भी लिंक जोड़ने हेतु अनुरोध करना।

4. जल क्रान्ति अभियान के लिए हिन्दी/अंग्रेजी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं में भी बुकलेटों, पोस्टरों और पम्पलेटों की प्रिन्टिंग और वितरण।

5. राज्य स्तर पर जल क्रान्ति अभियान के सम्बन्ध में अलग से बच्चों और वयस्कों के लिए निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन करना।

6. एनडब्ल्यूए, पुणे द्वारा आयोजित सभी प्रशिक्षण कार्यों में जल क्रान्ति अभियान के सूचना परक मॉड्यूल का आयोजन करना।

7. नीति योजनाकारों/ पणधारियों आदि को लक्ष्य बनाते हुए क्षमता निर्माण गतिविधियाँ।

अन्य क्रियाकलाप

जल क्रान्ति के भाग के रूप में निम्नलिखित गतिविधियों कोभी शुरू किया जाएगा:

1. राष्ट्रीय जल नीति-2012 के अनुसार राज्य जल नीति को अपनाने हेतु राज्यों को प्रोत्साहित किया जाएगा। उन्हें राज्य जल संसाधन परिषद तथा जल विनियामक अधिकरण को सुदृढ़ करने हेतु भी प्रोत्साहित किया जाएगा।

2. प्रभाव आकलन हेतु मूल्यांकन अध्ययन।

3. डब्ल्यूआरआईएस (जल के मानचित्रण हेतु स्पेस प्रोद्योगिकी का उपयोग) पर उपलब्ध आँकड़ों से प्रत्येक जल निकाय के लिए विशिष्ट पहचान संख्या आवंटित करना।

4. बहते जल का लाइव चित्र दिखाते हुए तत्काल नदी बहाव निगरानी को के.ज.आ. द्वारा विकसित किया जाएगा।

5. राज्य स्तर/ जिला स्तर समिति द्वारा जल बचाव के लिए प्रभाव अध्ययन/ नवीन प्रोद्योगिकी से सम्बन्धित किसी अन्य गतिविधि को शुरू करना।

कार्यान्वयन अभिकरण

जल ग्राम और मॉडल कमान:
अनुमोदित कार्यक्रम के तहत केन्द्रीय जल आयोग, केन्द्रीय भूमिजल बोर्ड और अन्य सहित राज्य सरकार और मन्त्रालय के विभिन्न संगठनों द्वारा सभी गतिविधियाँ शुरू की जाएँगी।

प्रदूषण निवारण:

भूमिजल और राज्य सरकारों के लिए के.भू.बो. द्वारा यह गतिविधि शुरू की जाएगी।

जनजागरुकता:

इस गतिविधि को के.जू.आ., के.भू.बो., एनआईएच, एनडब्ल्यूएम, एनडब्ल्यूए, पुणे और राज्य सरकारों के ग्रामीण विकास, शहरी विकास विभागों आदि द्वारा शुरू किया जाएगा।

समग्र समन्वय और निगरानी:

जल क्रान्ति अभियान के कार्यान्वयन हेतु प्रत्येक भागीदार संगठन एक नोडल अधिकारी का नामांकन करेंगे।

राष्ट्रीय स्तर पर एक सलाहकार और निगरानी समिति का गठन किया जाना प्रस्तावित है।

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