• हाई कोर्ट ने पतित पावनी गंगा नदी के संरक्षण के लिए एक और ऐतिहासिक फैसला देते हुए गंगोत्री-यमुनोत्री व अन्य ग्लेशियरों, नदी-नालों, गाड-गदेरों (बरसाती नाले), तालाब, वायु, जंगल, घास के मैदान और झरनों को भी जीवित व्यक्ति का दर्जा प्रदान करते हुए मौलिक अधिकार दे दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि जो कोई भी इन्हें नुकसान पहुंचाता है, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।
• गौरतलब है कि अदालत इससे पहले गंगा और यमुना नदी को जीवित व्यक्ति का दर्जा दे चुकी है। हरिद्वार निवासी अधिवक्ता ललित मिगलानी ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर गंगा नदी को प्रदूषण से मुक्त करने की गुहार लगाई थी। कोर्ट ने गंगा नदी में गंदगी बहा रहे होटल, आश्रम, उद्योगों को सील करने तथा खुले में शौच करने वालों पर जुर्माना लगाने के आदेश पारित किए थे।
• याचिकाकर्ता ने गंगोत्री, यमुनोत्री समेत अन्य ग्लेशियरों तथा हिमालय को गंगा-यमुना की तर्ज पर जीवित का दर्जा देने का आग्रह किया था।
• शुक्रवार को न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति आलोक सिंह की पीठ ने फैसला सुनाया। 66 पेज का इस फैसले में अदालत ने मुख्य सचिव को शहर, कस्बों व नदी और तालाब किनारे रह रहे लोगों को इस आदेश के बारे में जानकारी देकर जागरूक करने के लिए भी अधिकृत किया है। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि गंगा नदी में किसी भी दशा में सीवरेज न जाने पाए, जो प्रतिष्ठान सीवर व अन्य गंदगी बहा रहे हैं, उन्हें सील कर दिया जाए।
• मुख्य सचिव उत्तराखंड, निदेशक नमामि गंगे प्रोजेक्ट प्रवीण कुमार, लिंक एडवाइजर नमामि गंगे ईश्वर सिंह, महाधिवक्ता उत्तराखंड, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता व पर्यावरणविद् एमसी मेहता को इनकी सुरक्षा के लिए बतौर संरक्षक नियुक्त किया गया है।
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