रेल बजट की अवधारणा की वकालत ब्रिटिश राजनेता विलियम एक्वर्थ ने 1924 में की थी. उन्होंने अलग रेल बजट की सिफारिश इसलिए की थी क्योंकि उस समय ब्रिटिश सरकार द्वारा बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में किए जाने वाले खर्च का ज्यादातर हिस्सा रेल लाइन निर्माण में जा रहा था. पिछले वर्ष सरकार ने बजट वर्ष 2017-18 से रेल बजट और केंद्रीय बजट को मिलाने का फैसला किया. नीति आयोग के सदस्य बीबेक देबरॉय की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर विलय का फैसला किया गया है.
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किशोर देसाई के साथ बीबेक देबरॉय ने 'रेल बजट को अलग करना' पर एक अलग दस्तावेज प्रस्तुत किया. वित्त मंत्रालय और रेलवे मंत्रालय के प्रतिनिधियों वाली समिति ने उल्लिखित मुद्दे की जांच की और प्रक्रियात्मक विवरणों पर काम किया. केंद्रीय बजट और रेल बजट के विलय का अर्थ है भारतीय रेलवे को अलग से बोझ नहीं उठाना होगा. रेलवे के हिस्से की पूंजी जिसपर उसे सालाना लाभांश देना पड़ता था, से रेलवे को राहत मिल जाएगी. इसी वजह से 2017-18 से रेलवे पर लाभांश का कोई दायित्व नहीं होगा जबकि रेल मंत्रालय को पूंजीगत खर्च के लिए सकल बजटीय समर्थन मिलना जारी रहेगा।
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