अलास्का में आई विध्वंसक सुनामी की विनाशकारी घटना के बाद अमेरिका के ‘नेशनल ओशेनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए)’ द्वारा सन् 1965 में अंतरराष्ट्रीय सुनामी चेतावनी प्रणाली (टीडब्ल्यूएस) की स्थापना की गई। इसकी स्थापना अमेरिकी सरकारी द्वारा की गई। इस प्रणाली को विकसित करने के लिए उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीपों के अलावा चीन, जापान और रूस को भी शामिल किया गया। टीडब्ल्यूएस के सुनामी चेतावनी केंद्र हवाई केंद्र हवाई द्वीप में है। यह केंद्र प्रशांत महासागर के मध्य स्थित है, जहां सुनामी अधिकतर आती रहती है।
प्रशांत महासागर चेतावनी प्रणाली में 150 भूकंप निगरानी एवं गेजों (प्रमापीयों) का जाल सम्मिलित है जो समुद्र तल को मापता है। जब भी किसी भूकंप का पता लगता है, तब इसके घटित होने के स्थान और परिमाण की गणना की जाती है। यदि भूकंप का परिमाण किसी निश्चित स्तर से अधिक होता है, तब असुरक्षित क्षेत्रों में इसकी चेतावनी भेज दी जाती है। समुद्र तल में किसी भी असामान्य परिवर्तन की पता लगाने के लिए समुद्र तल को मापने वाले गेजों की निगरानी की जाती है। यदि इस प्रक्रिया में सुनामी का अनुमान होता है तब कंप्यूटर आधारित गणितीय मॉडल का उपयोग कर, संभावित सुनामी की गति और दिशा की गणना की जाती है। यह गणना विशेषताओं सहति अनेक घटकों के आधार पर की जाती है। इस गणना के आधार पर सुनामी के संभावित पक्ष में पड़ने वाले तटीय क्षेत्रों को सुनामी के बारे में चेतावनी दी जाती है।
शक्तिशाली भूकंप का पता लगते ही सुनामी चेतावनी प्रणाली सुनामी सूचकों, जैसे कि समुद्र तल के ऊपर उठने का पता लगाना शुरू कर देती है। सभी सूचनाओं का विश्लेषण कर सुनामी की चेतावनी को जारी करने में एक घंटे का समय लगता है।
हाल में विकसित डीप ओशेन ऐसेसमेंट एंड रिपोर्टिंग ऑन सुनामी (डी ए आर टी या डार्ट) प्रणाली द्वारा सुनामी चेतावनी प्रक्रिया में काफी सुधार आया है। इस प्रणाली को पहली बार सन् 2000 के अगस्त महीने में शुरू किया गया था। डाट प्रणाली वास्तविक काल संचार के लिए बाटम प्रेशर रिकार्डर (बीपीआर) युक्ति और समुद्री लहरों पर तैरती एक सतही उत्प्लव को रखती है। गहरे जल में स्थित बीपीआर से उत्प्लव तक आंकड़े या सूचनाएं सुनामी द्वारा ध्वनि माध्यम से प्रेषित होते हैं। उत्प्लव से आंकड़े या सूचनाओं को जियोस्टेशनरी ऑपरेशनल इन्वायरमेंटल सैटेलाइट डाटा कलेक्शन सिस्टम तक पहुंचाया जाता है। यहां से आंकड़े भूकेंद्र पर पहुंचते हैं और उन्हें तत्काल एनओएए के सुनामी क्रियाशील केंद्रको भेज दिया जाता है।
बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर में सुनामी बिरले ही आती है। यही कारण है कि जब 26 दिसंबर 2004 को यहां सुनामी आई थी, तब हिंद महासागर में कई सुनामी चेतावनी प्रणाली नहीं थी। अब हिंद महासागर क्षेत्र में सुनामी की चेतावनी देने वाली प्रणाली लग चुकी है। इस प्रणाली की सफलता के लिए आवश्यक है कि सभी देश ईमानदारी से सूचनाओं का आदान-प्रदान करें। दिसंबर 2004 के विध्वंसकारी सुनामी ने भारत को सुनामी चेतावनी प्रणाली विकसित करने के लिए मजबूर कर दिया और आपदा के तुरंत बाद सुनामी चेतावनी प्रणाली स्थापित करने की घोषणा की गई। ‘नेशनल अर्ली वार्निंग सिस्टम फॉर सुनामी एंड स्टॉर्म सर्लस इन इंडियन ओशन’ स्थापित हुआ। हिंद महासागरीय क्षेत्र में भारत पहला देश बन गया है जिसने अपनी प्रणाली तैयार की है। इस चेतावनी प्रणाली से भूकंप आने के बाद समुद्र के स्तर में होने वाले परिवर्तन की समय रहते सूचना मिल जाएगी।
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