• श्रम सुधारों पर कतर दुनिया को गुमराह कर रहा है। बीते साल दिसंबर में विवादास्पद ‘कफाला व्यवस्था’ समाप्त किए जाने के बावजूद विदेशी कामगारों को घर लौटने की इजाजत नहीं मिल रही है। इससे सबसे ज्यादा भारत, नेपाल और बांग्लादेश के कामगार प्रभावित हैं।
• 13 दिसंबर को श्रम सुधारों को अमल में लाते हुए कतर ने कहा था कि इससे विदेशी कामगारों के लिए नौकरी बदलना और घर लौटना आसान होगा। लेकिन, मजदूर संगठनों और श्रमिक अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं के मुताबिक हालात में अब तक कोई सुधार नहीं हुआ है।
• श्रम सुधार प्रभावी होने के बाद से सरकार कम से कम 760 कामगारों के घर लौटने के आवेदन को ठुकरा चुकी है। इंटरनेशनल ट्रेड यूनियन कॉन्फेडरेशन के महासचिव शरण बुरो ने बताया कि कतर का कुख्यात एग्जिट परमिट सिस्टम आज भी लागू है।
• इसे खत्म करने का अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन से किया गया कतर का वादा झूठा है। कतर के अधिकारियों की इस मामले में प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। लेकिन, इस महीने की शुरुआत में सरकारी न्यूज एजेंसी ने बताया था कि 15 फरवरी तक 213 कामगारों का घर लौटने का आवेदन खारिज किया गया था। इसकी वजह नहीं बताई गई थी।
• श्रमिक अधिकार कार्यकर्ताओं के मुताबिक नौकरी बदलने के लिए भी कामगारों के लिए पुराने नियोक्ता की मंजूरी जरूरी है। ऐसा नहीं करने पर उन पर आपराधिक मामला चलाया जाता है। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कतर को विदेशी कामगारों का शोषण रोकने के लिए नवंबर तक श्रम सुधार ठीक से लागू करने को कहा था। ऐसा नहीं होने पर जांच की चेतावनी दी गई थी।
• कतर की 25 लाख की कुल आबादी में करीब 90 फीसद भारत, नेपाल और बांग्लादेश के कामगार हैं। ज्यादातर बेहद कम कमाई वाले निर्माण कार्यो में लगे हैं। 2022 में होने वाले फुटबॉल विश्व कप के लिए ये स्टेडियम और अन्य इमारतों का निर्माण कर रहे हैं।
• र्दुव्य वहार, वेतन रोकना और पासपोर्ट जब्त करने की घटना सामान्य बात है। स्वास्थ्य और सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। मूलभूत सुविधाओं से वंचित जगहों पर विदेशी कामगारों को रखा जाता है।
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