इस खेल का नाम दो शब्दों से पड़ा है। तमिल भाषा में 'जल्ली' शब्द सल्ली से आया है जिसका मतलब 'सिक्के' होता है। कट्टू शब्द का अर्थ होता है 'बांधा हुआ'। इस खेल में सांडों के सींग पर लाल कपड़ा बांधा जाता है, जो कि खिलाड़ी को निकालना होता है। सांड को भीड़ में छोड़ दिया जाता है। भीड़ में जो भी व्यक्ति इस बंधे हुए कपड़े को सांड के सींग निकाल लेता है उसको ईनाम में सिक्के मिलते हैं।
जल्लीकट्टू तमिल नाडु के ग्रामीण इलाक़ों का एक परंपरागत खेल है जो पोंगल त्यौहार पर आयोजित कराया जाता है और जिसमे बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है। जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है। ये 2000 साल पुराना खेल है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है।
जल्लीकट्टू के जरिये तमिलनाडु के किसान अपनी और अपने सांढ़ की ताकत का प्रदर्शन करते हैं। इससे उन्हें यह पता चल जाता है कि उनका सांढ़ कितना मजबूत है और ब्रिडिंग के लिए उनका उपयोग किया जाता है।
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