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एंटीबायोटिक पूरी तरह से बेअसर होने का खतरा

एंटीबायोटिक पूरी तरह से बेअसर होने का खतरा
(निकोलस बागले और केविन उटर्सन, एंटी बायोटिक पर शोध करने वाले विशेषज्ञ)



अमेरिकाकेसेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एवं प्रीवेन्शन ने हाल ही में परेशान करने वाली रिपोर्ट जारी की है। उसमें बताया गया है कि नेवाडा राज्य में एक बुजुर्ग महिला की जान चली गई। उन्हें तो हृदय रोग था, कैंसर न्यूमोनिया। क्या उनकी जान उन बैक्टीरिया के कारण गई, जिनकी रोकथाम के लिए डॉक्टर उन्हें एंटीबायोटिक देेते थे। 

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट बैक्टीरिया के खिलाफ युद्ध का शिकार बनी वह वृद्ध महिला हाल के वर्षों में पहला उदाहरण है। जहां तक युद्ध की बात है, उसमें हम सभी हार रहे हैं। हालांकि, एंटीबायोटिक से सामना होते ही अधिकतम बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं, बहुत मजबूत वाले बग्स ही बचते हैं। बार-बार एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से ऐसे बैक्टीरिया का जन्म होता है। उनकी आबादी बढ़ते ही वे रेजिस्टेंस जीन में प्रवेश करने लगते हैं। एंटीबायोटिक का यही अभिशाप है कि जितना ज्यादा उसका उपयोग किया जाता है, हालत उतनी खराब होने लगती है। ऐसा तब होता है, जब लापरवाहीपूर्वक उसका उपयोग किया जाता है। 

अमेरिका में हर वर्ष रेजिस्टेंस बैक्टीरिया के कारण 23 हजार लोगों की जान जाती है। यह संख्या बढ़ रही है, क्योंकि माइक्रोब्स ने नए मैकेनिज़्म डेवलप कर लिए हैं, जिससे वे दवाइयों को हरा रहे हैं। वे कई दशकों तक संक्रमण बरकरार रख सकते हैं। इस कारण आज हम उस मुहाने पर खड़े हैं, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 'पोस्ट-एंटीबायोटिक-एरा' कहा है। ...और शायद हम एंटीबायोटिक को तब याद करेंगे, जब वह नहीं होंगी। उस स्थिति में हो सकता है कि मामूली खरोंच और सामान्य संक्रमण से भी जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। तब सामान्य सर्जरी के परिणाम रूसी रूले (ऐसा खेल, जिसमें कभी भी जान जा सकती है) जैसे होंगे। सूजाक और अन्य यौन संक्रमण वाली बीमारियों का उपचार लगभग खत्म हो जाएगा। टीबी जैसी जिन संक्रामक बीमारियों को हमारे माता-पिता हरा देते थे, वे ज्यादा ताकत के साथ हमारे सामने खड़ी हो जाएंगी। उस स्थिति का बड़ा असर आर्थिक खर्च पर होगा, जो कई गुना ज्यादा बढ़ जाएगा। कुछ ही माह पहले विश्व बैंक ने अनुमान लगाया कि अगर हम सभी इस दिशा में काम करने में विफल साबित हुए तो वर्ष 2050 तक 1.1 फीसदी से लेकर 3.8 फीसदी तक विश्व अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा। 

अब तक कुछ ही नई एंटीबायोटिक तैयार हो पाई हैं। इसका कारण बहुत सामान्य है। उनका असर परखने की बजाय, उन्हें अलमारियों में रख दिया गया है। उनका उपयोग तब किया जा सकता है, जब पुरानी एंटीबायोटिक काम करना बंद कर दे। अमेरिकी संसद को चाहिए कि वह बेहतर परिणाम देने वाली एंटीबायोटिक के लिए वित्तीय पुरस्कार देने की बात करे। 

इस तरह की 'मार्केट-एंट्री' पुरस्कार स्वास्थ्य अधिकारियों और डॉक्टरों को नई बेहतर दवाइयों का उपयोग करने की इजाजत देगा। इस स्थिति में चुनिंदा दवा निर्माताओं के लिए उनके पेटेंट बहुत उपयोगी साबित नहीं होंगे। इस तरह दवाइयों का अनुचित उपयोग भी बंद होगा। उस स्थिति में उन विकासशील देशों में अच्छी एंटीबायोटिक उचित कीमत पर बेची जा सकेंगी, जहां अभी पेटेंट वाली एंटीबायोटिक बहुत कम इस्तेमाल होती है। 

• 'मेडिकेयर' ने अस्पतालों और नर्सिंग होम के साथ प्लान बनाया है। इसमें ड्रग-रेजिस्टेंट इन्फेक्शन को रोकना और एंटीबायोटिक का समुचित इस्तेमाल सुनिश्चित करने की बात शामिल है। 
•  सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एवं प्रीवेन्शन ने कहा कि रेजिस्टेंट इन्फेक्शन (प्रतिरोधी संक्रमण) फैलने से रोकने के उपाय करने चाहिए, ताकि एंटीबायोटिक का गैरजरूरी उपयोग कम किया जा सके। 
•  फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने मानकों को मंजूरी देने के उपाय सरल कर दिए हैं। वह ड्रग इंडस्ट्री के साथ मिलकर एंटीबायोटिक का स्टॉक सीमित उपयोग करने की दिशा में काम कर रहा है। 
•  बायोमेडिकल एडवांस रिसर्च एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी अच्छी रिसर्च को बढ़ावा देने के लए पीपीपी मॉल पर रचनात्मक काम कर रही है।


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