• देश के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों की आवाज सुनने के लिए अब पहली बार संवैधानिक व्यवस्था होने जा रही है। केंद्र सरकार ने इसके लिए ‘राष्ट्रीय सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग’ के गठन को मंजूरी दे दी है।
• नया आयोग पिछड़े वर्ग की अपने स्तर से पहचान भी करेगा, जिसे मानना सरकार के लिए बाध्यकारी होगा। नाम से लगता है कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन भी पिछड़े वर्ग में शामिल होने का आधार हो सकता है।
• देश में पिछड़े वर्गो की पहचान और उनकी शिकायतों की सुनवाई के लिए केंद्र सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय मंत्रिमंडल की बुधवार को हुई बैठक में इस सिलसिले में फैसला लिया गया।
• इसका नाम ‘राष्ट्रीय सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग’ (एनएसईबीसी) होगा। साथ ही इसे संवैधानिक दर्जा हासिल होगा। इसके लिए संसद में जल्दी ही संविधान संशोधन विधेयक लाया जाएगा। इसके साथ ही पहले से चल रहे राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को समाप्त कर दिया जाएगा।
• पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है। यह केंद्र सरकार के सामाजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रलय के तहत चलने वाला वैधानिक आयोग है। 1993 में संसद में पारित कानून के तहत मौजूदा आयोग का गठन किया गया था।
• इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन सदस्य होंगे। विभिन्न वर्गो की मांग पर भी विचार यही करेगा। साथ ही पिछड़ा वर्ग की सूची में किसी खास वर्ग के यादा प्रतिनिधित्व या कम प्रतिनिधित्व पर भी यही सुनवाई करेगा।
• पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची में किसी भी वर्ग को जोड़ने या हटाने के लिए संसद की स्वीकृति लेने संबंधी अनुछेद 342ए जोड़ा जाएगा। यह भी तय किया गया है कि आयोग की सिफारिश सामान्य तौर पर सरकार को माननी ही होगी।
• सरकार के लिए बाध्यकारी होगी आयोग की सिफारिशद्यसंवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए संसद में पेश होगा बिल
• सरकार के लिए बाध्यकारी होगी आयोग की सिफारिशद्यसंवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए संसद में पेश होगा बिल
• सरकार के लिए बाध्यकारी होगी आयोग की सिफारिशद्यसंवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए संसद में पेश होगा बिल
• क्या है मौजूदा पिछड़ा वर्ग आयोग
• राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 में बना था।
• यह वैधानिक संस्था है। इसके तहत सरकार के स्तर पर ही फैसले होते हैं।
• आयोग का एक अध्यक्ष होता है और चार अन्य सदस्य होते हैं।
• यह कानून एक फरवरी, 1993 से जम्मू-कश्मीर छोड़कर पूरे भारत में लागू है।
• इसका काम किसी वर्ग को पिछड़ों की सूची में शामिल किए जाने के अनुरोधों की जांच करना है।
• आयोग केंद्र सरकार को ऐसे सुझाव देता है, जो उसे उचित लगता है।
• यह किसी व्यक्ति को समन करने और हाजिर कराने का अधिकार रखता है।
• आयोग किसी भी दस्तावेज को प्रस्तुत करने को भी कह सकता है।
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